सत्ता की साझेदारी
जब किसी शासन व्यवस्था में हर सामाजिक समूह और समुदाय की भागीदारी सरकार में होती है तो इसे सत्ता की साझेदारी कहते हैं। लोकतंत्र का मूलमंत्र है सत्ता की साझेदारी। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार में हर नागरिक का हिस्सा होता है। यह हिस्सा भागीदारी के द्वारा संभव हो पाता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में नागरिकों को इस बात का अधिकार होता है कि शासन के तरीकों के बारे में उनसे सलाह ली जाये।
भारत में सत्ता की साझेदारी
भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। यहाँ के नागरिक सीधे मताधिकार के माध्यम से अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं। लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि एक सरकार को चुनते हैं। इस तरह से एक चुनी हुई सरकार रोजमर्रा का शासन चलाती है और नये नियम बनाती है या पुराने नियमों और कानूनों में संशोधन करती है।
किसी भी लोकतंत्र में हर प्रकार की राजनैतिक शक्ति का स्रोत प्रजा होती है। यह लोकतंत्र का एक मूलभूत सिद्धांत है। ऐसी शासन व्यवस्था में लोग स्वराज की संस्थाओं के माध्यम से अपने आप पर शासन करते हैं। एक समुचित लोकतांत्रिक सरकार में समाज के विविध समूहों और मतों को उचित सम्मान दिया जाता है। जन नीतियों के निर्माण में हर नागरिक की आवाज सुनी जाती है। इसलिए लोकतंत्र में यह जरूरी हो जाता है कि राजनैतिक सत्ता का बँटवारा अधिक से अधिक नागरिकों के बीच हो।
सत्ता की साझेदारी की आवश्यकता
समाज में सौहार्द्र और शांति बनाये रखने के लिये सत्ता की साझेदारी जरूरी है। इससे विभिन्न सामाजिक समूहों में टकराव को कम करने में मदद मिलती है।
किसी भी समाज में बहुसंख्यक के आतंक का खतरा बना रहता है। बहुसंख्यक का आतंक न केवल अल्पसंख्यक समूह को तबाह करता है बल्कि स्वयं को भी तबाह करता है। सत्ता की साझेदारी के माध्यम से बहुसंख्यक के आतंक से बचा जा सकता है।
लोगों की आवाज ही लोकतांत्रिक सरकार की नींव बनाती है। इसलिये यह कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की आत्मा का सम्मान रखने के लिए सत्ता की साझेदारी जरूरी है।
सत्ता की साझेदारी के दो कारण होते हैं। एक है समझदारी भरा कारण और दूसरा है नैतिक कारण। सत्ता की साझेदारी का समझदारी भरा कारण है समाज में टकराव और बहुसंख्यक के आतंक को रोकना। सत्ता की साझेदारी का नैतिक कारण है लोकतंत्र की आत्मा को अक्षुण्ण रखना।
सत्ता की साझेदारी के रूप:
शासन के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा:
- लोकतंत्र में शासन के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। उदाहरण के लिए; विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा। इस प्रकार के बँटवारे में सत्ता के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं। इसलिए इस प्रकार के बँटवारे को क्षैतिज बँटवारा कहते हैं।
- शासन के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता के बँटवारे से यह सुनिश्चित हो जाता है कि शासन के किसी भी एक अंग के पास असीमित शक्ति न हो। यह विभिन्न संस्थानों के बीच शक्ति के संतुलन को सुनिश्चित करता है।
- कार्यपालिका सत्ता का उपयोग करती है लेकिन वह संसद के अधीन होती है। संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त होता है लेकिन उसे जनता को जवाब देना होता है। न्यायपालिका इन दोनों से स्वतंत्र होती है। न्यायपालिका का काम होता है यह देखना कि विधायिका और कार्यपालिका सभी नियमों का सही ढ़ंग से पालन कर रही है या नहीं।
विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बँटवारा:
भारत जैसे विशाल देश में सरकार चलाने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो। भारत सरकार को दो मुख्य स्तरों में बाँटा गया है; केंद्र सरकार और राज्य सरकार। केंद्र सरकार पर पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी होती है। गणराज्य की विभिन्न इकाइयों की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर होती है। दोनों सरकारों के अधिकार क्षेत्र में अलग अलग विषय आते हैं। कुछ ऐसे विषय भी होते हैं जो साझा लिस्ट में रहते हैं और जिनपर राज्य और केंद्र सरकारों दोनों का अधिकार होता है।
सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा:
भारत विविधताओं से भरा देश है। यहाँ अनेक सामाजिक, भाषाई और जातीय समूह हैं। इन विभिन्न समूहों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है। समाज के पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जाता है ताकि सरकारी तंत्र में उनका सही प्रतिनिधित्व हो सके। उदाहरण के लिए; अल्पसंख्यक समुदाय, अन्य पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचिक जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है।
विभिन्न प्रकार के दबाव समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा:
- सत्ता का बँटवारा विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के बीच होता है। सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी या सबसे बड़े राजनैतिक गठबंधन को शासन करने का मौका मिलता है। बची हुई पार्टियाँ विपक्ष का निर्माण करती हैं। विपक्ष का काम होता है यह सुनिश्चित करना कि सत्तारूढ़ पार्टी लोगों की इच्छा के अनुसार काम करे। विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के लोग विभिन्न कमेटियों के अध्यक्ष बनते हैं। यह राजनैतिक पार्टियो6 के बीच सत्ता की साझेदारी का एक अच्छा उदाहरण है।
- राजनैतिक पार्टियों के अलावा देश में कई दबाव समूह होते हैं। उदाहरण के लिए; एसोचैम, छात्र संगठन, मजदूर यूनियन, आदि। ऐसे संगठनों के प्रतिनिधि कई नीति निर्धारक अंगों के भाग बनते हैं। इस तरह से दबाव समूहों को भी सत्ता में साझेदारी मिलती है।
NCERT Solution
प्रश्न 1: आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के अलग अलग तरीके क्या हैं? इनमें से प्रत्येक का एक उदाहरण भी दें।
उत्तर:आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के निम्न तरीके हैं”
- सरकार विभिन्न अंगों के बीच सत्ता की साझेदारी: उदाहरण: विधायिका और कार्यपालिका के बीच सत्ता की साझेदारी।
- सरकार के विभिन्न स्तरों में सत्ता की साझेदारी: उदाहरण: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता की साझेदारी।
- सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी: उदाहरण: सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण।
- दबाव समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी: नये श्रम कानून के निर्माण के समय ट्रेड यूनियन के रिप्रेजेंटेटिव से सलाह लेना।
प्रश्न 2: भारतीय संदर्भ में सत्ता की हिस्सेदारी का एक उदाहरण देते हुए इसका एक युक्तिपरक और एक नैतिक कारण बताएँ।
उत्तर:युक्तिपरक कारण: सत्ता की साझेदारी से विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच टकराव कम करने में मदद मिलती है। इसलिये सामाजिक सौहार्द्र और शांति बनाए रखने के लिए सत्ता की साझेदारी जरूरी है। नैतिक कारण: लोकतंत्र की आत्मा को अक्षुण्ण रखना।
प्रश्न 3: इस अध्याय को पढ़ने के बाद तीन छात्रों ने अलग अलग निष्कर्ष निकाले। आप इनमें से किससे सहमत हैं और क्यों? अपना जवाब करीब 50 शब्दों में दें।
थम्मन: जिन समाजों में क्षेत्रीय, भाषायी और जातीय आधार पर विभाजन हो सिर्फ वहाँ सत्ता की साझेदारी जरूरी है।
मथाई: सत्ता की साझेदारी सिर्फ ऐसे बड़े देशों के लिए उपयुक्त है जहाँ क्षेत्रीय विभाजन मौजूद होते हैं।
औसेफ: हर समाज में सत्ता की साझेदारी की जरूरत होती है भली ही वह छोटा हो या उसमें सामाजिक विभाजन न हों।
थम्मन: जिन समाजों में क्षेत्रीय, भाषायी और जातीय आधार पर विभाजन हो सिर्फ वहाँ सत्ता की साझेदारी जरूरी है।
मथाई: सत्ता की साझेदारी सिर्फ ऐसे बड़े देशों के लिए उपयुक्त है जहाँ क्षेत्रीय विभाजन मौजूद होते हैं।
औसेफ: हर समाज में सत्ता की साझेदारी की जरूरत होती है भली ही वह छोटा हो या उसमें सामाजिक विभाजन न हों।
उत्तर: मैं औसेफ से सहमत हूँ। हम जानते हैं कि लोकतंत्र की मूल भावना है लोगों के हाथ में सत्ता देना। सत्ता की साझेदारी करके हम लोकतंत्र की मूल भावना का सम्मान करते हैं। यदि सत्ता की साझेदारी नहीं होती है तो सत्ता कुछ चुनिंदा हाथों तक ही सीमित रह जाती है। ऐसी स्थिति से तानाशाही का जन्म होता है जिससे लोकतंत्र की हत्या हो जाती है।
प्रश्न 4: बेल्जियम में ब्रूसेल्स के निकट स्थित शहर मर्चटेम के मेयर ने अपने यहाँ के स्कूलों में फ्रेंच बोलने पर लगी रोक को सही बताया है। उन्होंने कहा कि इससे डच भाषा न बोलने वाले लोगों को इस फ्लेमिश शहर के लोगों से जुड़ने में मदद मिलेगी। क्या आपको लगता है कि यह फैसला बेल्जियम की सत्ता की साझेदारी व्यवस्था की मूल भावना से मेल खाता है? अपना जवाब करीब 50 शब्दों में लिखें।
उत्तर: बेल्जियम में सत्ता की साझेदारी के तहत डच भाषी और डच भाषा न बोलने वालों को बराबर की हिस्सेदारी दी गई है। ब्रूसेल्स की सरकार में फ्रेंच भाषी और डच भाषी लोगों में सत्ता का बराबर बँटवारा है। इससे पता चलता है कि दोनों समूहों में एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना है। इसलिये फ्रेंच भाषा वाले स्कूलों पर बैन लगाकर गलत किया है।
प्रश्न 5: नीचे दिए गए उद्धरण को गौर से पढ़ें और इसमें सत्ता की साझेदारी के जो युक्तिपकर कारण बताए गए हैं उसमें से किसी एक का चुनाव करें।
“महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने और अपने संविधान निर्माताओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए हमें पंचायतों को अधिकार देने की जरूरत है। पंचायती राज ही वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना करता है। यह सत्ता उन लोगों के हाथों में सौंपता है जिनके हाथों में इसे होना चाहिए। भ्रष्टाचार कम करने और प्रशासनिक कुशलता को बढ़ाने का एक उपाय पंचायतों को अधिकार देना भी है। जब विकास की योजनाओं को बनाने और लागू करने में लोगों की भागीदारी होगी तो इन योजनाओं पर उनका नियंत्रण बढ़ेगा। इससे भ्रष्ट बिचौलियों को खत्म किया जा सकेगा। इस प्रकार पंचायती राज लोकतंत्र की नींव को मजबूत करेगा।“
“महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने और अपने संविधान निर्माताओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए हमें पंचायतों को अधिकार देने की जरूरत है। पंचायती राज ही वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना करता है। यह सत्ता उन लोगों के हाथों में सौंपता है जिनके हाथों में इसे होना चाहिए। भ्रष्टाचार कम करने और प्रशासनिक कुशलता को बढ़ाने का एक उपाय पंचायतों को अधिकार देना भी है। जब विकास की योजनाओं को बनाने और लागू करने में लोगों की भागीदारी होगी तो इन योजनाओं पर उनका नियंत्रण बढ़ेगा। इससे भ्रष्ट बिचौलियों को खत्म किया जा सकेगा। इस प्रकार पंचायती राज लोकतंत्र की नींव को मजबूत करेगा।“
उत्तर: इस उद्धरण में सरकार के विभिन्न स्तरों पर सत्ता की साझेदारी की बात की गई है जो सत्ता की साझेदारी का एक युक्तिपरक कारण है।
प्रश्न 6: सत्ता के बँटवारे के पक्ष और विपक्ष में कई तरह के तर्क दिए जाते हैं। इनमें से जो तर्क सत्ता के बँटवारे के पक्ष में हैं उनकी पहचान करें और नीचे दिए गए कोड से अपने उत्तर का चुनाव करें।
- विभिन्न समुदायों के बीच टकराव को कम करती है।
- पक्षपात का अंदेशा कम करती है।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया को अटका देती है।
- विविधताओं को अपने में समेट लेती है।
- अस्थिरता और आपसी फूट को बढ़ाती है।
- सत्ता में लोगों की भागीदारी बढ़ाती है।
- देश की एकता को कमजोर करती है।
उत्तर: a, b, d, f
प्रश्न 7: बेल्जियम और श्रीलंका की सत्ता में साझेदारी की व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित बयानों पर विचार करें:
- बेल्जियम में डच भाषी बहुसंख्यकों ने फ्रेंच भाषी अल्पसंख्यकों पर अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयास किया।
- सरकार की नीतियों ने सिंहली भाषी बहुसंख्यकों का प्रभुत्व बनाए रखने का प्रयास किया।
- अपनी संस्कृति और भाषा को बचाने तथा शिक्षा और रोजगार में समान अवसर के लिए श्रीलंका के तमिलों ने सत्ता को संघीय ढ़ाँचे पर बाँटने की माँग की।
- बेल्जियम में एकात्मक सरकार की जगह संघीय शासन व्यवस्था लाकर मुल्क को भाषा के आधार पर टूटने से बचा लिया गया।
ऊपर दिए गए बयानों में से कौन से सही हैं?
उत्तर: b, c और d
प्रश्न 8: निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए
सूची 1 | सूची 2 |
---|---|
1. सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा | a) सामुदायिक सरकार |
2. विभिन्न स्तर की सरकारों के बीच अधिकारों का बँटवारा | b) अधिकारों का वितरण |
3. विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी | c) गठबंधन सरकार |
4. दो या अधिक दलों के बीच सत्ता की साझेदारी | d) संघीय सरकार |
उत्तर: 1 - b, 2 - d, 3 - a, 4 - c
प्रश्न 9: सत्ता की साझेदारी के बारे में निम्नलिखित दो बयानों पर गौर करें और नीचे दिए प्रश्न का जवाब दे:
- सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र के लिए लाभकर है।
- इससे सामाजिक समूहों में टकराव का अंदेशा घटता है।
इन बयानों में कौन सही है और कौन गलत?
उत्तर: दोनों बयान सही हैं।
Extra Questions Answers
प्रश्न 1: सत्ता की साझेदारी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब किसी शासन व्यवस्था में हर सामाजिक समूह और समुदाय की भागीदारी सरकार में होती है तो इसे सत्ता की साझेदारी कहते हैं।
प्रश्न 2: लोकतंत्र का मूलमंत्र क्या है?
उत्तर: सत्ता की साझेदारी
प्रश्न 3: भारत में सरकार का चुनाव कैसे होता है?
उत्तर: भारत के नागरिक सीधे मताधिकार के माध्यम से अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं। लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि एक सरकार को चुनते हैं।
प्रश्न 4: भारत में चुनी हुई सरकार के मुख्य कार्य क्या होते हैं?
उत्तर: भारत में एक चुनी हुई सरकार रोजमर्रा का शासन चलाती है और नये नियम बनाती है या पुराने नियमों और कानूनों में संशोधन करती है।
प्रश्न 5: लोकतंत्र में यह क्यों आवश्यक होता है कि सत्ता का बँटवारा अधिक से अधिक लोगों के बीच हो?
उत्तर: किसी भी लोकतंत्र में हर प्रकार की राजनैतिक शक्ति का स्रोत प्रजा होती है। यह लोकतंत्र का एक मूलभूत सिद्धांत है। ऐसी शासन व्यवस्था में लोग स्वराज की संस्थाओं के माध्यम से अपने आप पर शासन करते हैं। एक समुचित लोकतांत्रिक सरकार में समाज के विविध समूहों और मतों को उचित सम्मान दिया जाता है। जन नीतियों के निर्माण में हर नागरिक की आवाज सुनी जाती है। इसलिए लोकतंत्र में यह जरूरी हो जाता है कि राजनैतिक सत्ता का बँटवारा अधिक से अधिक नागरिकों के बीच हो।
प्रश्न 6: समाज में सौहार्द्र और शांति बनाये रखने में सत्ता की साझेदारी की क्या भूमिका है?
उत्तर: सत्ता की साझेदारी से विभिन्न सामाजिक समूहों में टकराव को कम करने में मदद मिलती है।
प्रश्न 7: सत्ता की साझेदारी के दो कारण कौन कौन से हैं?
उत्तर: सत्ता की साझेदारी के दो कारण होते हैं। एक है समझदारी भरा कारण और दूसरा है नैतिक कारण।
प्रश्न 8: सत्ता की साझेदारी के मुख्य रूप क्या हैं?
उत्तर: सत्ता की साझेदारी के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं:
- शासन के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बँटवारा
- शासन के विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बँटवारा
- सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा
- विभिन्न प्रकार के दबाव समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा
प्रश्न 9: न्यायपालिका का मुख्य कार्य क्या होता है?
उत्तर: न्यायपालिका का काम होता है यह देखना कि विधायिका और कार्यपालिका सभी नियमों का सही ढ़ंग से पालन कर रही है या नहीं।
प्रश्न 10: संसद का मुख्य काम क्या होता है?
उत्तर: नये कानून बनाना और पुराने कानूनों में संशोधन करना
10 नागरिक शास्त्र
संघवाद
सत्ता का संतुलन
अलग अलग संघीय ढ़ाँचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के संतुलन अलग अलग प्रकार के होते हैं। यह संतुलन उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है जिसपर उस संघ का निर्माण हुआ था।
संघों के निर्माण के दो तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं:
सबको साथ लाकर संघ बनाना: इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत: एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें। इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं; संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया।
सबको जोड़कर संघ बनाना: इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है। इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है। हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो। उदाहरण के लिए; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं: भारत, स्पेन, बेल्जियम, आदि।
विषयों की लिस्ट:
यूनियन लिस्ट: इस लिस्ट में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं। कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें यूनियन लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है। यूनियन लिस्ट के कुछ विषय हैं; देश की सुरक्षा, विदेश नीति, बैंकिंग, सूचना प्रसारण और मुद्रा।
स्टेट लिस्ट: जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें स्टेट लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है। उदाहरण; पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई।
साझा लिस्ट: इस लिस्ट को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं। वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं, इस लिस्ट में आते हैं। साझा लिस्ट के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है। यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। उदाहरण; शिक्षा, वन, ट्रेड यूनियन, विवाह, दत्तक अभिग्रहण, उत्तराधिकार, आदि।
बची हुई लिस्ट: वैसे विषय जो ऊपर दी गई किसी भी लिस्ट में न हो तो उन्हें बचे हुए विषयों की लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है।
विशेष दर्जा: जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है। इस राज्य का अपना अलग संविधान है। भारत के संविधान के कई प्रावधान इस राज्य में तब तक लागू नहीं किये जा सकते जब तक कि उन्हें राज्य की विधान सभा की अनुमति न मिले। यदि कोई भारतीय इस राज्य का स्थाई नागरिक नहीं है तो वह इस राज्य में जमीन या मकान नहीं खरीद सकता है। कुछ अन्य राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है।
केंद्र शासित प्रदेश: भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है। इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है। इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं। ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं। उदाहरण; दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, आदि।
भारत में सत्ता की साझेदारी की यह प्रणाली हमारे संविधान की मूलभूत संरचना में है। इस प्रणाली को बदलना बहुत कठिन है। अकेले संसद द्वारा यह संभव नहीं है। इस प्रणाली में कोई भी बदलाव लाने के लिए पहले तो उसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा। उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से सहमति लेनी होगी।
भारत की संघीय व्यवस्था
भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता के कारण
भाषायी राज्य: भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। इसके अलावा यहाँ भौगोलिक, जातीय, सांस्कृतिक, आदि विविधताएँ भी हैं। कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया ताकि एक ही भाषा बोलने वाले लोग एक ही राज्य में रह सकें। उदाहरण; तामिल नाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आदि। कुछ राज्यों का गठन भूगोल, जातीयता, संस्कृति आदि के आधार पर हुआ। उदाहरण; नागालैंड, उत्तराखंड, झारखंड, आदि।
भाषा नीति: भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। हिंदी को आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई है। लेकिन हिंदी केवल 40% लोगों की मातृभाषा है। इसलिए दूसरी भाषाओं की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है। इसके लिए कई प्रावधान बनाये गये। हिंदी के अलावा, 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।
केंद्र और राज्य के रिश्ते: केंद्र और राज्य के बीच के रिश्तों के पुनर्गठन से हमारी संघीय व्यवस्था को और बल मिला है।
संघवाद
कांग्रेस की मोनोपॉली के समय:
आजादी के बाद एक लंबे समय तक भारत के अधिकांश हिस्सों में केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हुआ करती थी। यह कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर था। उस दौर में ऐसा अक्सर होता था जब केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के अधिकारों की अवहेलना की जाती थी। छोटी से छोटी बात पर किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था।
गठबंधन सरकार के दौर की स्थिति:
1989 के बाद कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर समाप्त हुआ। उसके बाद केंद्र में गठबंधन सरकार का दौर शुरु हुआ। इससे राज्य सरकार की स्वायत्तता को अधिक सम्मान मिलने लगा और सत्ता में साझेदारी भी बढ़ी। इससे भारत में संघीय व्यवस्था को और अधिक बल मिला।
भारत में भाषायी विविधता:
1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 1500 अलग-अलग भाषाएँ हैं। इन भाषाओं को कुछ मुख्य भाषाओं के समूह में रखा गया है। उदाहरण के लिये भोजपुरी, मगधी, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, भीली और कई अन्य भाषाओं को हिंदी के समूह में रखा गया है। विभिन्न भाषाओं के समूह बनाने के बाद भी भारत में 114 मुख्य भाषाएँ हैं। इनमें से 22 भाषाओं को संविधान के आठवें अनुच्छेद में अनुसूचित भाषाओं की लिस्ट में रखा गया है। अन्य भाषाओं को अ-अनुसूचित भाषा कहा जाता है। इस तरह से भाषाओं के मामले में भारत दुनिया का सबसे विविध देश है।
भारत में विकेंद्रीकरण:
भारत एक विशाल देश है, जहाँ दो स्तरों वाली सरकार से काम चलाना बहुत मुश्किल काम है। भारत के कुछ राज्य तो यूरोप के कई देशों से भी बड़े हैं। जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश तो रूस से भी बड़ा है। इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बोली, खानपान और संस्कृति की विविधता देखने को मिलती है।
कई स्थानीय मुद्दे ऐसे होते हैं जिनका निपटारा स्थानीय स्तर पर ही क्या जा सकता है। स्थानीय सरकार के माध्यम से सरकारी तंत्र में लोगों की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होती है। इसलिए भारत में सरकार के एक तीसरे स्तर को बनाने की जरूरत महसूस हुई।
1992 में विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। संविधान में संशोधन किया गया ताकि लोकतंत्र के तीसरे स्तर को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाया जा सके। स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
अब स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव करवाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो गया है।
इन निकायों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के लिये सदस्यों और पदाधिकारियों के सीट रिजर्व होते हैं।
सभी सीटों का कम से कम एक तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित होता है।
पंचायत और म्यूनिसिपल के चुनावों को सुचारु रूप से करवाने के लिये हर राज्य में एक स्वतंत्र ‘राज्य चुनाव आयोग’ का गठन किया गया है।
पंचायती राज:
राज्य सरकारों को अपने राजस्व में से कुछ हिस्सा इन स्थानीय निकायों को देना होगा। यह हिस्सा अलग अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकता है। ग्रामीण स्थानीय स्वशाषी निकाय को आम भाषा में पंचायती राज कहते हैं।
हर गाँव (कुछ राज्यों में गाँवों का एक समूह) में एक ग्राम पंचायत होती है। यह कई वार्ड सदस्य (पंच) का एक समूह होता है। पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं।
पंचायत के सदस्यों का चुनाव उस पंचायत में रहने वाले वयस्कों द्वारा किया जाता है।
स्थानीय स्वशासी संरचना जिला के स्तर तक होती है।
पंचायत समिति: कुछ ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक पंचायत समिति या प्रखंड या मंडल बनता है। इस मंडली के सदस्यों का चुनाव उस क्षेत्र के सभी पंचायतों के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
जिला परिषद: एक जिले की सारी पंचायत समितियाँ मिलकर जिला परिषद का निर्माण करती हैं। जिला परिषद के अधिकतर सदस्य चुनकर आते हैं। उस जिले के लोक सभा के सदस्य, विधान सभा के सदस्य और जिला स्तर के अन्य निकायों के कुछ अधिकारी भी जिला परिषद के सदस्य होते हैं। जिला परिषद का राजनैतिक मुखिया जिला परिषद का अध्यक्ष होता है।
नगरपालिका: इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्वशासी निकाय होती है। शहरों में नगरपालिका का गठन होता है। बड़े शहरों में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का गठन होता है। इनके सदस्य (वार्ड काउंसिलर) लोगों द्वारा चुने जाते हैं। फिर ये सदस्य अपने चेअरमैन का चुनाव करते हैं। म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में इसे मेयर कहा जाता है।
संघवाद
NCERT Solution
उत्तर: बेल्जियम से मिलती जुलती विशेषता: सबको जोड़कर संघ बनाना।
बेल्जियम से अलग विशेषता: भारतीय संघ में राज्यों को कम स्वायत्तता मिली हुई है।
प्रश्न 2: शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में क्या-क्या मुख्य अंतर है? इसे उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करें।
उत्तर: शासन के एकात्मक स्वरूप में केंद्र सरकार बहुत शक्तिशाली होती है और शासन के निचले स्तरों को सही मायने में शक्ति नहीं मिलती। इस तरह के उदाहरण कई तानाशाही शासनों और राजतंत्रों में देखे जा सकते हैं; जैसे लीबिया, सउदी अरब, आदि।
प्रश्न 3: 1992 के संविधान संशोधन के पहले और बाद के स्थानीय शासन के दो महत्वपूर्ण अंतरों को बताएँ।
उत्तर: 1992 के संविधान संशोधन के पहले स्थानीय शासन निकायों के पास संवैधानिक शक्ति नहीं होती थी। उस समय स्थानीय निकायों के चुनाव भी नियमित रूप से नहीं हो पाते थे। लेकिन 1992 के संशोधन के बाद चीजें बदल गई हैं।
प्रश्न 4: रिक्त स्थानों को भरें:
चूँकि अमरीका ............तरह का संघ है इसलिए वहाँ सभी इकाइयों को समान अधिकार है। संघीय सरकार के मुकाबले प्रांत ...........हैं। लेकिन भारत की संघीय प्रणाली .............की है और यहाँ कुछ राज्यों को औरों से ज्यादा शक्तियाँ प्राप्त हैं।
उत्तर: चूँकि अमरीका सबको साथ लाने वाले तरह का संघ है इसलिए वहाँ सभी इकाइयों को समान अधिकार है। संघीय सरकार के मुकाबले प्रांत अधिक शक्तिशाली हैं। लेकिन भारत की संघीय प्रणाली सबको जोड़ने की है और यहाँ कुछ राज्यों को औरों से ज्यादा शक्तियाँ प्राप्त हैं।
प्रश्न 5: भारत की भाषा नीति पर नीचे तीन प्रतिक्रियाएँ दी गई हैं। इनमें से आप जिसे ठीक समझते हैं उसके पक्ष में तर्क और उदाहरण दें।
संगीता: प्रमुख भाषाओं को समाहित करने की नीति ने राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया है।
अरमान: भाषा के आधार पर राज्यों के गठन ने हमें बाँट दिया है। हम इसी कारण अपनी भाषा के प्रति सचेत हो गए हैं।
हरीश: इस नीति ने अन्य भाषाओं के ऊपर अँगरेजी के प्रभुत्व को मजबूत करने भर का काम किया है।
उत्तर: संगीता का तर्क सबसे सही लगता है। भाषा का इस्तेमाल केवल एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिये ही नहीं होता बल्कि भाषा उस संस्कृति और सभ्यता का अहम हिस्सा होती है जिसे विकसित होने में हजारों साल लगते हैं। लोगों का अपनी भाषा के साथ भावनात्मक जुड़ाव होता है। भारत की भाषा नीति लोगों में दूसरों की संस्कृति के लिए सम्मान जगाने की कोशिश है और इससे भारत की एकता को मजबूत करने में मदद मिली है।
प्रश्न 6: संघीय सरकार की एक विशिष्टता है:
- राष्ट्रीय सरकार अपने कुछ अधिकार प्रांतीय सरकारों को देती है।
- अधिकार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बँट जाते हैं।
- निर्वाचित पदाधिकारी ही सरकार में सर्वोच्च ताकत का उपयोग करते हैं।
- सरकार की शक्ति शासन के विभिन्न स्तरों के बीच बँट जाती है।
उत्तर: सरकार की शक्ति शासन के विभिन्न स्तरों के बीच बँट जाती है।
प्रश्न 7: भारतीय संविधान की विभिन्न सूचियों में दर्ज कुछ विषय यहाँ दिए गये हैं। इन्हें नीचे दी गई तालिका में संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची वाले समूहों में लिखें: रक्षा, पुलिस, कृषि, शिक्षा, बैंकिंग, वन, संचार, व्यापार, विवाह।
उत्तर:
1 | 2 |
---|---|
1.संघीय सूची | रक्षा, बैंकिंग, संचार, विवाह |
2.राज्य सूची | कृषि, पुलिस |
3.समवर्ती सूची | शिक्षा, वन, व्यापार |
प्रश्न 8: नीचे भारत में शासन के विभिन्न स्तरों और उनके कानून बनाने के अधिकार क्षेत्र के जोड़े दिए गये हैं। इनमें से कौन सा जोड़ा सही मेल वाला नहीं है?
1 | 2 |
---|---|
a) राज्य सरकार | राज्य सूची |
b) केंद्र सरकार | संघीय सूची |
c) केंद्र और राज्य सरकार | समवर्ती सूची |
d) स्थानीय सरकार | अवशिष्ट अधिकार |
उत्तर: स्थानीय सरकार → अवशिष्ट अधिकार
प्रश्न 9:सुमेलित कीजिए:
सूची 1 | सूची 2 |
---|---|
1. भारतीय संघ | a) प्रधानमंत्री |
2. राज्य | b) सरपंच |
3. नगर निगम | c) राज्यपाल |
4. ग्राम पंचायत | d) मेयर |
उत्तर: 1- a, 2- c, 3- d, 4 - b
प्रश्न 10:नीचे दिये गये कथनों में से सही और गलत बताएँ:
- संघीय व्यवस्था में संघ और प्रांतीय सरकारों के अधिकार स्पष्ट रूप से तय होते हैं।
- भारत एक संघ है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकार संविधान में स्पष्ट रूप से दर्ज हैं और अपने-अपने विषयों पर उनका स्पष्ट अधिकार है।
- श्रीलंका में संघीय व्यवस्था है क्योंकि उसे प्रांतों में बाँट दिया गया है।
- भारत में संघीय व्यवस्था नहीं रही क्योंकि राज्यों कुछ अधिकार स्थानीय शासन की इकाइयों में बाँट दिये गये हैं।
उत्तर: a - सही, b - सही, c - सही, d - गलत
संघवाद
Extra Question Answer
प्रश्न 1:संघवाद किसे कहते हैं?
उत्तर: शासन की वह व्यवस्था जिसमें किसी देश की अवयव इकाइयों और एक केंद्रीय शक्ति के बीच सत्ता की साझेदारी हो उसे संघवाद कहते हैं।
प्रश्न 2:किसी भी संघीय व्यवस्था में सामान्य तौर पर सरकार के कितने स्तर होते हैं?
उत्तर: किसी भी संघीय व्यवस्था में सामान्य तौर पर सरकार के दो स्तर होते हैं। एक स्तर पर पूरे देश के लिये एक सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य की सरकारें होती हैं।
प्रश्न 3:संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण क्या हैं?
उत्तर: संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
इस प्रकार की शासन व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर होते हैं।
शासन के विभिन्न स्तरों द्वारा नागरिकों के एक ही समूह पर शासन किया जाता है। हर स्तर का अधिकार क्षेत्र अलग होता है।
संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्रों के बारे में साफ साफ उल्लेख किया गया है। हर स्तर की सरकार का अस्तित्व और अधिकार क्षेत्र को संविधान से गारंटी मिली होती है।
प्रश्न 4:संघीय ढ़ाँचे के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर: संघीय ढ़ाँचे के दो उद्देश्य होते हैं। पहला उद्देश्य है देश की एकता को बल देना। दूसरा उद्देश्य है क्षेत्रीय विविधता को सम्मान देना।
प्रश्न 5:किसी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू क्या हैं?
उत्तर: किसी भी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू होते हैं; पारस्परिक विश्वास और साथ रहने पर सहमति।
प्रश्न 6:सबको साथ लाकर संघ बनाने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत: एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें। इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं; संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया।
प्रश्न 7:सबको जोड़कर संघ बनाने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है। इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है। हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो। उदाहरण के लिए; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है। इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं: भारत, स्पेन, बेल्जियम, आदि।
प्रश्न 8:यूनियन लिस्ट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: इस लिस्ट में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं। कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें यूनियन लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है। यूनियन लिस्ट के कुछ विषय हैं; देश की सुरक्षा, विदेश नीति, बैंकिंग, सूचना प्रसारण और मुद्रा।
प्रश्न 9:स्टेट लिस्ट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें स्टेट लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है। उदाहरण; पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई।
प्रश्न 10:साझा लिस्ट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: इस लिस्ट को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं। वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं, इस लिस्ट में आते हैं। साझा लिस्ट के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है। यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। उदाहरण; शिक्षा, वन, ट्रेड यूनियन, विवाह, दत्तक अभिग्रहण, उत्तराधिकार, आदि।
प्रश्न 11:केंद्र शासित प्रदेश का मतलब समझाएँ।
उत्तर: भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है। इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है। इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं। ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं। उदाहरण; दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, आदि।
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