पुरुष प्रजनन तंत्र (Male Reproducative System) : पुरुष प्रजनन अंग में अधिवृषण (Epididymis), वृषण (Testes), शुक्रवाहिका (Vas Deferens), शुक्राशय (Seminal Vesicle), पुर:स्थ (Prostate), शिश्न (Penis) आदि प्रमुख अंग है।
पुरुष के गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters of Man) :-
अपरा (Placenta) : भ्रूण और स्त्री के गर्भाशय की दीवार के बीच में रुधिरधानी-तंतुओं जैसी रचना को अपरा कहते है। इन्हीं अपरा कोशिकाओं के द्वारा भ्रूण को गर्भाशय में अपना पोषक तत्व प्राप्त होता है। बच्चा पैदा होने के बाद अपरा को काटकर अलग किया जाता है।
स्त्रियों में यौवनारम्भ (Puberty in Women) : मादाओं में भी जब मादा जनन अंग अपना कार्य करना शुरू करते हैं तभी यौवनारम्भ होता है। यह सामान्यतया 11-14 वर्ष की आयु में होता है। स्त्रियों में एक मादा जनन-चक्र होता है, जिसकी अवधि 28 दिन होती है। प्रत्येक 28 दिनों में स्त्रियों में जनन अंग की रचना तथा कार्यों में अनेक परिवर्तन होते है, इसे रजोधर्म चक्र (Menstrual Cycle) कहते है।
रजोधर्म का नियमन पीयूष ग्रंथि द्वारा स्रावित हार्मोनों द्वारा होता है। गर्भधारण करने के बाद रजोधर्म तथा अंडोत्सर्ग बंद हो जाता है। प्रसव अर्थात शिशु पैदा होने के बाद रजोधर्म तथा अंडोत्सर्ग फिर से शुरू हो जाते है।
मादा प्रजनन चक्र या ऋतु स्राव चक्र (Female Reproducative Cycle or Menstruation Cycle) : मनुष्य में स्त्री का प्रजनन काल 12-13 वर्ष की उम्र में शुरू होता है, जो 40-45 वर्ष की उम्र तक चलता है। इस प्रजनन काल में गर्भावस्था को छोड़कर प्रति 26 से 28 दिनों मी अवधि पर गर्भाशय से रक्त तथा इनकी आंतरिक दीवार से श्लेष्म का स्राव होता है। यह स्राव तीन-चार दिनों तक चलता है। इसे ही रजोधर्म या मासिक चक्र या ऋतु स्राव कहते हैं। स्त्रियों में 40-45 वर्ष के बाद ऋतु स्राव नहीं होता है, इसे रजोनिवृति कहते हैं। रजोनिवृति की बाद स्तन ढीले हो जाते हैं तथा गर्भधारण की क्षमता समाप्त हो जाती है।
स्त्रियों के गौण लैंगिक लक्षण -
- वृषण (Testes) : वृषण नर जनन-ग्रंथियाँ हैं जो अंडाकार होती है। इनकी संख्या दो होती है। वृषण का कार्य शुक्राणु (Sperms) उत्पन्न करना है। इसमें शुक्राणुओं की संख्या 20 से 20 लाख तक होती है।
- शुक्राणु (Sperm) : यह तीन भाग में बंटा रहता है - सिर, ग्रीवा और पुच्छ। शुक्राणु शरीर में 30 दिन तक जीवित रहते हैं जबकि मैथुन के बाद स्त्रियॉं में केवल 72 घंटे तक जीवित रहते है।
- वीर्य (Semen) : वीर्य का निर्माण शुक्राणुओं, शुक्राशय द्रव तथा प्रोस्टेट एवं काउपर्स ग्रंथियों के स्राव से होता है।
पुरुष के गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters of Man) :-
- कंधे चौड़े होते हैं।
- शरीर सुडौल होते हैं।
- वृद्धि के कारण लंबाई बढ़ती है।
- चेहरे पर बाल (मूँछ, दाढ़ी) निकलते हैं।
- बगलों में तथा शिश्न व वृषण कोष के चारों ओर बाल आते हैं।
- आवाज़ भरी हो जाती है।
- अंडाशय (Ovaries) : स्त्रियॉं में दो अंडाशय बादाम के आकार के भूरे रंग के होते है। इंका मुख्य कार्य अंडाणु (Ovum) पैदा करना है। अंडाशय से आस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा प्रोजेस्टेरान (Pregestrone) का स्राव होता है जो ऋतुस्राव को नियंत्रित करता है।
- डिंबवाहिनी नली (Fallopian Tube) : इस नली से डिंब अंडाशय से गर्भाशय में जाता है। इनकी संख्या दो होती है।
- गर्भाशय (Uterus) : गर्भाशय मूत्राशय के पीछे और मलाशय के आगे स्थित होता है। यह नाशपाती के आकार का होता है। गर्भाशय की पेशी को गर्भाशय पेशी (Myometrium) तथा श्लेष्मिक कला को इंडोमेट्रियम (Endometrium) कहते हैं।
अपरा (Placenta) : भ्रूण और स्त्री के गर्भाशय की दीवार के बीच में रुधिरधानी-तंतुओं जैसी रचना को अपरा कहते है। इन्हीं अपरा कोशिकाओं के द्वारा भ्रूण को गर्भाशय में अपना पोषक तत्व प्राप्त होता है। बच्चा पैदा होने के बाद अपरा को काटकर अलग किया जाता है।
स्त्रियों में यौवनारम्भ (Puberty in Women) : मादाओं में भी जब मादा जनन अंग अपना कार्य करना शुरू करते हैं तभी यौवनारम्भ होता है। यह सामान्यतया 11-14 वर्ष की आयु में होता है। स्त्रियों में एक मादा जनन-चक्र होता है, जिसकी अवधि 28 दिन होती है। प्रत्येक 28 दिनों में स्त्रियों में जनन अंग की रचना तथा कार्यों में अनेक परिवर्तन होते है, इसे रजोधर्म चक्र (Menstrual Cycle) कहते है।
रजोधर्म का नियमन पीयूष ग्रंथि द्वारा स्रावित हार्मोनों द्वारा होता है। गर्भधारण करने के बाद रजोधर्म तथा अंडोत्सर्ग बंद हो जाता है। प्रसव अर्थात शिशु पैदा होने के बाद रजोधर्म तथा अंडोत्सर्ग फिर से शुरू हो जाते है।
मादा प्रजनन चक्र या ऋतु स्राव चक्र (Female Reproducative Cycle or Menstruation Cycle) : मनुष्य में स्त्री का प्रजनन काल 12-13 वर्ष की उम्र में शुरू होता है, जो 40-45 वर्ष की उम्र तक चलता है। इस प्रजनन काल में गर्भावस्था को छोड़कर प्रति 26 से 28 दिनों मी अवधि पर गर्भाशय से रक्त तथा इनकी आंतरिक दीवार से श्लेष्म का स्राव होता है। यह स्राव तीन-चार दिनों तक चलता है। इसे ही रजोधर्म या मासिक चक्र या ऋतु स्राव कहते हैं। स्त्रियों में 40-45 वर्ष के बाद ऋतु स्राव नहीं होता है, इसे रजोनिवृति कहते हैं। रजोनिवृति की बाद स्तन ढीले हो जाते हैं तथा गर्भधारण की क्षमता समाप्त हो जाती है।
स्त्रियों के गौण लैंगिक लक्षण -
- स्तनों की वृद्धि एवं विकास होता है।
- बाहरी जनन अंग भी पूरी तरह विकसित होते हैं।
- श्रोणि मेखला तथा नितम्ब चौड़े हो जाते हैं।
- मासिक धर्म शुरू हो जाता है।
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