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Friday, 24 May 2019

[ जैव-प्रक्रम ] कक्षा-10


विज्ञान
[ जैव-प्रक्रम ]          कक्षा-10
अभ्यास
प्रश्न 1: मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबन्धित है-

          (a) पोषण                                           (b) श्वसन
          (c) उत्सर्जन                                         (d) परिवहन
उत्तर :  (c) उत्सर्जन

प्रश्न 2: पादप में जाइलम उत्तरदायी है-
          (a) जल का वहन                                  (b) भोजन का वहन
          (c) अमीनो अम्ल का वहन                     (d) ऑक्सीजन का वहन
उत्तर:   (a) जल का वहन

प्रश्न 3: स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है-
          (a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल                   (b) क्लोरोफिल
          (c) सूर्य का प्रकाश                                 (d) उपरोक्त सभी
उत्तर : (d) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4: पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है-
          (a) कोशिका द्रव्य                                  (b) माइटोकॉन्ड्रिया
          (c) हरित लवक                                    (d) केंद्रक
उत्तर : (b) माइटोकॉन्ड्रिया
प्रश्न 5: हमारे भोजन में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर: हमारे भोजन में वसा का पाचन मुख्य रूप से छोटी आन्त में होता है। इस कार्य के लिए छोटी आन्त, यकृत तथा अग्न्याशय से श्रवण प्राप्त करती है। यहाँ पित्त लवण द्वारा भोजन में मौजूद वसा की बड़ी गोलिकाओं को छोटी गोलिकाओं में खंडित कर दिया जाता जिससे एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। अग्न्याशय से आने वाला अग्न्याशिक रस इन छोटी गोलिकाओं वाली वसा को लाइपेज एंजाइम के माध्यम से पचा देता है। एंजाइम अंत में वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसिरॉल में बदल देते हैं।
प्रश्न 6: भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर :    भोजन के पाचन में लार की अहम भूमिका है। आहार का स्तर बहुत कोमल होता है। लार सम्पूर्ण
            भोजन में फैल कर उसे चबाने एवं गीला करने में मदद करता है ताकि इसका मार्ग आसान हो जाए।
            लार में मौजूद एंजाइम जिसे एमिलेस कहते हैं स्टार्च के जटिल अणुओं को शर्करा में विखंडित कर
             देता हैं।

प्रश्न 7: स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उनके उपोत्पाद क्या हैं?
उत्तर:     स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कार्बन डाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश, जल तथा
            क्लोरोफिल की मौजूदगी है। कार्बोहाइड्रेट तथा ऑक्सीजन स्वपोषी पोषण के मुख्य उपोत्पाद हैं।
                        6CO2 + 6H2O   क्लोरोफिल तथा सूर्य का प्रकाश      C6H12O6 + 6O2

प्रश्न 8: वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय
            श्वसन होता है?
उत्तर :    वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में अंतर :
         
S. No.
अवायवीय
अवायवीय श्वसन
1
यह ऑक्सीजन की मौजूदगी में होता है।
यह ऑक्सीजन की गैर-मौजूदगी में होता है।
2
गैसों का आदान-प्रदान वातावरण में होता है।
गैसों का आदान-प्रदान नहीं होता है।
3
श्वसन के बाद CO2 तथा H2O उत्सर्जित होते हैं
श्वसन के बाद CO2 तथा C2H5OH उत्सर्जित होते हैं
4
अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है
अपेक्षाकृत कम ऊर्जा उत्पन्न होती है।
अवायवीय श्वसन कुछ जलयुक्त पौधों की जड़ों में, कुछ परजीवी कीड़े में, जानवर की मांसपेशियों में और कुछ सूक्ष्म जीवों जैसे कि खमीर में होता है।

प्रश्न 9: गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित है?
उत्तर:    फेफड़ों के अंदर गुब्बारे जैसी एक संरचना होती है जिसे कूपिका कहते हैं। इसका भीतरी भाग छोटी-  
           छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाती है और ये नलिकाएँ एक विस्तृत सतह का निर्माण करती हैं   
           जिससे गैसों का अधिकतम विनियमम हो सके। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तृत 
          जल होता है। जब हम सांस लेते हैं तो हमारी वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है और वायु विस्तृत कूपिकाओं में 
          भर जाती है। ये कूपिकाएँ फेफड़ों में बहुत कम जगह में स्थित होती है लेकिन जब इनमें हवा भर जाती है
          तो ये फूलकर बड़े क्षेत्रफल में फैल जाती हैं और गैसों के विनिमय के लिए अधिकतम क्षेत्रफल प्रदान 
          करती हैं।  

प्रश्न 10: हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर :    हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य हमारे शरीर की समस्त कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुँचना है।   
             हीमोग्लोबिन की कमी के कारण शरीर में समस्त्त भागों तक ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँचाया
             जा सकता है। जिसके कारण शरीर के विभिन्न अंगों को कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा नहीं मिल 
             पाएगी और हमें कमजोरी थकान का अनुभव होने लगता है।

प्रश्न 11: मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर:     मनुष्य तथा अन्य कोशिकीय जीवों में रक्त हृदय में दो बार प्रवाहित
            होता है। इसलिए इस प्रक्रिया को दोहरा परिसंचरण कहते हैं। हृदय
            में चार वेश्म होते हैं। इसके ऊपर दो वेश्म को अलिंद तथा नीचे दो
            वेश्म को निलय कहते है।
            ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर फुफ्फुस से हृदय में बाईं ओर स्थित बाएँ
            अलिंद में आता है। इस रुधिर का एकत्रित करते समय बायाँ अलिंद
            शिथिल रहता है। जब अगला बायाँ निलय फैलता है तब यह
            संकुचित होता है, जिससे रुधिर इसमें स्थानांतरित होता है। जब पेशीय
            बायाँ निलय संकुचित होता है, तब रुधिर शरीर में पंपित हो जाता है।
            इसी प्रकार जब दायाँ अलिंद फैलता है तो शरीर से विऑक्सीजनित
            रुधिर इसमें आ जाता है। जैसे ही दायाँ अलिंद संकुचित होता है, दायाँ निलय फैल जाता है। यह रुधिर   
            को दाएँ  निलय में स्थानांतरित कर देता है। इस प्रकार सम्पूर्ण शरीर में हृदय से रक्त संचरण होता रहता है।

प्रश्न 12: जाइलम और फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है?
उत्तर :    जाइलम और फ्लोएम में पदार्थों के वहन में अंतर :
         
S. No.
जाइलम
फ्लोएम
1
जाइलम पौधों में जल तथा खनिज लवण का वहन करता है।
फ्लोएम पौधों में तैयार भोजन को विभिन्न भागों तक पहुँचाता है।
2
जल का वहन जड़ से ऊपर की ओर होता है।
पत्तियों में तैयार भोजन का वहन सभी दिशाओं में होता है।
3
जाइलम द्वारा जल का वहन साधारण भौतिक बलों जैसे वाष्पोत्सर्जन आदि द्वारा होता है।
फ्लोएम द्वारा भोजन के वहन में ऊर्जा (ATP के रूप में) की आवश्यकता होती है ।
प्रश्न  13: फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ़्रोन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए?
उत्तर :     फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ़्रोन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना :
         

कूपिका
वृक्काणु (नेफ़्रोन)
1
फुफ्फुस में कूपिकाएँ छोटे-छोटे गुब्बारे जैसी संरचनाएँ होती है।
वृक्क में वृक्काणु (नेफ़्रोन) नलिका के आकार के निस्पंदन एकक होते है।
2
कूपिकाओं की दीवारें एक कोशिका जितनी ही मोती होती हैं और इसमें रक्त केशिकाओं का एक गुच्छ होता है।



फुफ्फुस की तरह ही, बहुत पतली भित्ति वाली रुधिर केशिकाओं का गुच्छ होता है।

3
कूपिकाएँ एक सतह उपलब्ध कराती हैं, जिससे गैसों (CO2  और O2) का विनिमय होता है।
नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल आदि को छानकर अलग किया जाता है। ग्लूकोस, एनीमो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल का पुनरवशोषण होता है।
             




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